Gajendra Moksha Stotra | गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्रम् | Gajendra Moksha Stotra With Lyrics @LordKrishnabhajanKKB
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इस स्तोत्र में एक हाथी और मगरमच्छ की कहानी है। एक हाथी अपने परिवार के साथ जंगल में घूम रहा था और जब उसे प्यास लगती है तब वो सरोवर के किनारे पानी पीने पहुंच जाता है। सरोवर में कमल के फूल देखकर हाथी जल क्रीड़ा करने पहुंच जाता है। इतने में एक मगरमच्छ उस हाथी का पैर पकड़ लेता है और छोड़ता नहीं है। हाथी के सभी परिवार वाले उसे बाहर निकालने की कोशिश करते हैं और अंत में वहीं छोड़कर चले जाते हैं। हाथी बाहर आने की कोशिश करता है, लेकिन मगरमच्छ उसका पैर नहीं छोड़ता है। जब हाथी पूरी तरह डूबने लगता है तब उसने श्री हरी विष्णु को पुकारते हुए उनकी जो स्तुति की थी वही गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र के नाम से जानी जाती है। इस स्तुति को सुनकर भगवान् विष्णु वहां आए और गज की रक्षा की।
श्रीमद्भागवत के अष्टम स्कन्ध में गजेन्द्रमोक्ष की कथा है। द्वितीय अध्याय में ग्राह के साथ गजेन्द्र के युद्ध का वर्णन है, तृतीय अध्याय में गजेन्द्रकृत भगवान् के स्तवन और गजेन्द्रमोक्ष का प्रसङ्ग है और चतुर्थ अध्याय में गज और ग्राह के पूर्वजन्म का इतिहास है। श्रीमद्भागवत में गजेन्द्रमोक्ष आख्यान के पाठ का माहात्म्य बतलाते हुए इसको स्वर्ग तथा यशदायक, कलियुग के समस्त पापों का नाशक, दुःस्वप्ननाशक और श्रेय साधक कहा गया है। तृतीय अध्याय का स्तवन बहुत ही उपादेय है। इसकी भाषा और भाव सिद्धान्त के प्रतिपादक और बहुत ही मनोहर हैं। भाव के साथ स्तुति करते-करते मनुष्य तन्मय हो जाता है।
स्वयं भगवान् का वचन है कि 'जो रात्रि के शेष में (ब्रह्ममुहूर्त के प्रारम्भ में) जागकर इस स्तोत्र के द्वारा मेरा स्तवन करते हैं, उन्हें मैं मृत्यु के समय निर्मल मति (अपनी स्मृति) प्रदान करता हूँ।' और 'अन्ते मतिः सा गतिः' के अनुसार उसे निश्चय ही भगवान् की प्राप्ति हो जाती है तथा इस प्रकार वह सदा के लिये जन्म-मृत्यु के बन्धन से छूट जाता है।
नारायण कवच के साथ गजेन्द्र मोक्ष का पाठ करें तो यह अधिक फलदायक होता है।